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Jharkhand Election 2024: जयराम महतो – NDA और INDIA गठबंधनों के लिए चुनौती कैसे बन सकते हैं?

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Jharkhand Election 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारी तेज हो गई है, और इस बार एक नई राजनीतिक ताकत उभरकर सामने आई है: जयराम महतो और उनकी पार्टी, झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM)। जयराम महतो की बढ़ती लोकप्रियता और कुर्मी वोटों पर उनकी मजबूत पकड़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकती है। 13 और 20 नवंबर को मतदान होने के बाद 23 नवंबर को चुनाव के परिणाम घोषित किए जाएंगे।

जयराम महतो का उदय

Jharkhand Election 2024: जयराम महतो – NDA और INDIA गठबंधनों के लिए चुनौती कैसे बन सकते हैं?

झारखंड की राजनीति में जातिगत समीकरणों का हमेशा से खास महत्व रहा है। कुर्मी समुदाय, जो राज्य में 15% से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है, राजनीतिक खेल में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जयराम महतो खुद इसी कुर्मी समुदाय से आते हैं, और इसी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी रणनीति बनाई है। गिरिडीह लोकसभा सीट से 2024 में उनके प्रदर्शन ने यह दिखाया कि वह अब एक प्रमुख राजनीतिक चेहरा बन चुके हैं।

हालांकि वह लोकसभा चुनाव में जीत नहीं पाए, लेकिन 3,47,322 वोट हासिल कर उन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया। यह बढ़ती लोकप्रियता विधानसभा चुनावों में भी उनके पक्ष में काम कर सकती है, खासकर कुर्मी बहुल क्षेत्रों में।

2024 लोकसभा चुनाव में JLKM का प्रदर्शन

2024 के लोकसभा चुनाव में, JLKM ने 8 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से गिरिडीह, रांची, हजारीबाग, कोडरमा और धनबाद जैसी प्रमुख सीटें शामिल थीं। हालांकि पार्टी को कोई सीट जीतने में सफलता नहीं मिली, लेकिन उनका वोट प्रतिशत दर्शाता है कि उन्होंने जनसमर्थन प्राप्त किया है। उदाहरण के लिए, रांची से देवेंद्र नाथ महतो ने 1,32,647 वोट प्राप्त किए, जबकि हजारीबाग से संजय कुमार मेहता ने 1,57,977 वोट हासिल किए। कुल मिलाकर, JLKM ने इन आठ सीटों पर 8,03,069 वोट जुटाए, जो उनकी बढ़ती राजनीतिक उपस्थिति को स्पष्ट करता है।

NDA और INDIA गठबंधन के लिए खतरा

जयराम महतो की बढ़ती लोकप्रियता ने NDA और INDIA गठबंधनों की नींद उड़ा दी है। गिरिडीह सीट, जो NDA के तहत AJSU पार्टी के पास है, और JMM के पास INDIA गठबंधन में है, वहां जयराम महतो के बढ़ते समर्थन ने दोनों गठबंधनों के लिए चिंता पैदा कर दी है। इस बार JLKM 71 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है, जिनमें से जयराम महतो खुद दुमरी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।

कुर्मी बहुल सीटों पर उनका जनाधार मजबूत हो रहा है, और अगर JLKM ने इस वोट बैंक में सेंध लगा दी, तो यह established पार्टियों के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है।

कुर्मी वोट बैंक: चुनावी समीकरण का केंद्र

झारखंड की राजनीति में कुर्मी वोटों की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सिली, रामगढ़, मांडू, गोमिया, डुमरी, और ईचागढ़ जैसी सीटों पर कुर्मी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहाँ जयराम महतो की पार्टी का प्रभाव चुनाव के परिणाम को बदल सकता है।

AJSU पार्टी के अध्यक्ष सुदेश महतो भी कुर्मी समुदाय से आते हैं, लेकिन जयराम महतो अब इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए तैयार हैं। दोनों नेताओं की राजनीतिक पृष्ठभूमि छात्र राजनीति से है, लेकिन जयराम महतो की उभरती ताकत उन्हें एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी बना रही है।

स्थानीय मुद्दों पर पकड़

जयराम महतो की राजनीति की सबसे बड़ी ताकत उनकी स्थानीय मुद्दों पर पकड़ और जनता से सीधा जुड़ाव है। वह स्थानीयता, रोजगार और झारखंडी भाषा के मुद्दों पर लगातार आवाज उठाते रहे हैं। 1932 के खतियान के आधार पर झारखंड के मूल निवासियों की पहचान का मुद्दा भी उनके चुनावी एजेंडे का हिस्सा है। उनका यह दृष्टिकोण विशेष रूप से युवाओं के बीच लोकप्रियता बढ़ाने में सहायक रहा है।

कौन हैं जयराम महतो?

जयराम महतो का जन्म 27 दिसंबर 1994 को धनबाद जिले के मंतंद गांव में हुआ। उन्होंने अपनी शिक्षा कोयलांचल विश्वविद्यालय से की और पिछले चार वर्षों से स्थानीय मुद्दों पर आंदोलन कर रहे हैं। झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति के तहत उन्होंने 2023 में JLKM का गठन किया, जो अब झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन चुकी है।

चुनावी समीकरण पर जयराम महतो का असर

झारखंड विधानसभा चुनाव में जयराम महतो और उनकी पार्टी JLKM की भूमिका एक महत्वपूर्ण मोड़ ला सकती है। कुर्मी बहुल क्षेत्रों में उनकी ताकत NDA और INDIA गठबंधनों के लिए एक चुनौती उत्पन्न कर सकती है। अगर JLKM कुर्मी वोटों में सेंध लगाने में सफल होती है, तो चुनाव परिणामों में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। जयराम महतो का उभार झारखंड की राजनीति के समीकरणों को बदलने की पूरी तैयारी में है, और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावों में इसका क्या असर पड़ता है।

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